जब देह बिके और रौंदी जाये रोटी के आभाव में,,
जब बीते कोई बचपन ढाबों पर शिक्षा के आभाव में,,
हाँ तब मैं कविता लिखता हूँ,
तब-तब मैं कविता लिखता हूँ..
जब सच कहने पर होती जेल, अपराधियों को मिलती बेल,,
भूखों की रोटी पर होता जब-जब ये सत्ता का खेल,,
हाँ तब मैं कविता लिखता हूँ,
तब तब मैं कविता लिखता हूँ..
जब ज्ञानी करते अज्ञान की बातें,और ढोंगी बाँटें टीवी पर ज्ञान,,
जब मेहनत मजदूरी करे अपाहिज,और दिखे भिखारी कोई नौजवान,,
हाँ तब मैं कविता लिखता हूँ,
तब तब मैं कविता लिखता हूँ..
जब गाँव कोई शहरों की झुग्गी में, नित्य बसेरा पता है,,
जब सबको रोटी देने वाला किसान, गोलियों से भूख मिटाता है,,
हाँ तब मैं कविता लिखता हूँ,
तब तब मैं कविता लिखता हूँ..!!
उम्मीद है इस भ्रष्ट समाज में परिवर्तन जल्द ही आएगा,,
अन्यथा मेरा भ्रष्टतंत्र से द्वंद पहले भी चलता था, आगे भी चलता जायेगा...!! (जय हिंद)-Dr. Ravi
जब बीते कोई बचपन ढाबों पर शिक्षा के आभाव में,,
हाँ तब मैं कविता लिखता हूँ,
तब-तब मैं कविता लिखता हूँ..
जब सच कहने पर होती जेल, अपराधियों को मिलती बेल,,
भूखों की रोटी पर होता जब-जब ये सत्ता का खेल,,
हाँ तब मैं कविता लिखता हूँ,
तब तब मैं कविता लिखता हूँ..
जब ज्ञानी करते अज्ञान की बातें,और ढोंगी बाँटें टीवी पर ज्ञान,,
जब मेहनत मजदूरी करे अपाहिज,और दिखे भिखारी कोई नौजवान,,
हाँ तब मैं कविता लिखता हूँ,
तब तब मैं कविता लिखता हूँ..
जब गाँव कोई शहरों की झुग्गी में, नित्य बसेरा पता है,,
जब सबको रोटी देने वाला किसान, गोलियों से भूख मिटाता है,,
हाँ तब मैं कविता लिखता हूँ,
तब तब मैं कविता लिखता हूँ..!!
उम्मीद है इस भ्रष्ट समाज में परिवर्तन जल्द ही आएगा,,
अन्यथा मेरा भ्रष्टतंत्र से द्वंद पहले भी चलता था, आगे भी चलता जायेगा...!! (जय हिंद)-Dr. Ravi
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